छुप छुप के
वो हमे अपनो मे कहता है
मगर छुप छुप के मिलता है
हर पल डर है उसे किसका
पूछे जो फिर बहाने बनाता है
वो हमारे पास रहना भी चाहे
मजबूरी ये जाना पड़ता है
ख्वाहिशे भूला दी कब की
जरूरतो मे दौड़ता रहता है
जिदंगी टूक टूक भी जाती है
एक लम्बी सांस से समझाता है