छुट्टी की अर्जी
साहब , आज आपसे बात कुछ कहानी है,
मेरी पत्नी का जन्मदिन है
इसलिए छुट्टी जल्दी करनी है।
फूल – पताके ले जाने है,
थाली में दीप सजाने है।
छुट्टी जल्दी जो मिल जाती
मुझसे घर पर देख
वो भी बहुत खुश हो जाती।
बाबू जी, बस इतनी सी बात कहनी थी।
छुट्टी का फरमान करो
अर्जी मेरी स्वीकार करो।
रोज तुम नए बहाने बनाते हो,
आज बीबी को बीच में क्यों लाते हो।
जाओ और फिर काम में लग जाओ,
अर्जी तुम्हारी स्वीकार नही,
छुट्टी का कोई फरमान नही।
साहब ! आज ही छुट्टी मागने आया हूँ,
पत्नी का जन्मदिन अभी – अभी जान पाया हूँ।
साहब मुझ पर थोड़ा रहम करो,
छुट्टी पर विचार विमर्श करो।
मजदूर दिवस पर न छुट्टी दो कोई बात नही,
पर वर्ष में एक बार प्रिय का जन्मदिन आता है,
क्या हमारे लिए कोई त्यौहार नही?
छुट्टी दे दो साहब रात अंधेरी हो रही,
दरवाजे पर बैठी नयन रस्ता मेरी देख रही।
बात से ज्यादा काम करो,
बैठकर न तुम आराम करो।
छुट्टी की क्या बात है?
जन्मदिन तो हर साल आता है,
बीबी से कहना तुम
छुट्टी से मजदूरी कट जाता है।
अर्जी तुम्हारी स्वीकार नही,
छुट्टी का कोई फरमान नही।
काम तुम पूरी रात करना।
छुट्टी मैं दे नही रहा तुमको
छुट्टी की फिर न बात करना।
Rishikant Rao Shikhare