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19 Jan 2021 · 1 min read

छीज रही है धीरे-धीरे…

छीज रही है धीरे-धीरे मेरी साँसों की डोर
अधरों पर है हास भीग रही नैनों की कोर

बाहर पसरा सन्नाटा है भीतर कितना शोर
तकूँ तुझे मैं ऐसे चंदा को ज्यों तके चकोर

दूर से ही सुन स्वर तेरा खिल उठती मैं ऐसे
श्यामल घन की सुन गर्जना नाचे जैसे मोर

आजा मेरे चाँद रूप-छटा दिखा जा अपनी
बीत न जाए कहीं रैना रीती हो न जाए भोर

भरमाए सदा मन मेरा नज़र कहीं न आए
ध्याऊँ तुझे मैं मीरा-सी छुपा कहाँ चितचोर

मैं ही न रही अब मुझमें ढूँढ-ढूँढ जग हारा
तू ही तू बस आए नजर देखूँ मैं जिस ओर

अनगिन रूप तू धारे अनथक तुझे निहारूँ
टूटे न तन्द्रा मेरी ए पवन ! न मुझे झकझोर

छल-प्रपंच दुनिया के बैठे सब जाल पसारे
उलझता जाए जीवन मेरा हाथ न आए छोर

बंधन कटे ‘सीमा’ का, उड़ असीम तक जाऊँ
भीजे तन-मन मेरा, बरसें नेह-घन घनघोर

-डाॅ० सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ०प्र०)

Language: Hindi
3 Likes · 391 Views
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