छींके में खीर (बाल कविता)
बाल कविता : छींके में खीर
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बिल्ली मौसी देख रही थी
छींके को ललचाती,
छींके में जो खीर रखी थी
खुशबू थी महकाती
काफी उछली कूद लगाई
लेकिन पहुँच न पाई ,
छींका ऊँचा टँगा हुआ था
बिल्ली थी मुरझाई
तभी भाग्य से छींके की
रस्सी ने छोड़ी खूँटी,
गिरी धरा पर खीर देखकर
बिल्ली उस पर टूटी
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रचयिता: रवि प्रकाश, रामपुर