छिपी हो तुम किन राहों में
छिपी हो तुम किन राहों में
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छिपी हो तुम किन राहों में
अब आ भी जाओ बाहों में
कब से बैचेन हैं मेरी आँखे
छिप जाओ मेरी निगाहों में
खोज ली हमने सब दिशाएं
पथिक हो तुम किन राहों में
गर कसूर है मेरी नजर का
गलती मानी,तेरी निगाहों में
नाराज हो तुम किस बात से
बातें मान ली हमने आहों में
यकीनन यकीं नही यकीं पर
यकींन नहीं रहा है गवाहों में
थक गएं हम मैं ढूँढते -ढूँढते
बुला लो मुझे , तेरी पनाहों में
महसूस करो जो मेरी जरूरत
बुला लो,खड़े हैं तेरी गुहारों में
सुखविंद्र छोटी सी है जिंदगानी
भीग जाएंगे तेरी प्रेम फुहारों में
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली ( कैथल)
9896872258