छाया धुंध का राज गगन में
छाया धुँध का राज गगन में
फैला विष है आज चमन में
तरुवर पात सभी मुरझाये
मानों झुलसे बड़ी अगन में ।
झूठे बोल कुहासा आया
उसने घेरी भोर अकड़़ में
भूमंडल में घुटती साँसें
शुद्ध हवा अब नहीं पकड़ में ।
धूल धुएँ के कण मंडराते
करते ऊधम गाँव नगर में
दमा अस्थमा खाँसी टी बी
आ जाते हम मनुज भँवर में ।
सभी दिशाएँ धुँधलायी सी
हुई साँझ बीमार पहर में
रूप सिंदूरी कहाँ खो गया
लोभ मोह की सुखद लहर में ।
सुरसा सी बढ़ती इच्छाएँ
लेशमात्र भी नहीं ठहर में
जानबूझ अनजान बने सब
बहक रहे हैं नयी बहर में ।
गाड़ी ए सी अब घर घर में
इनके बिना न शान शहर में
रूप यही भौतिक विकास का
खुश हैं हम दो घूँट ज़हर में ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी ,सम्भल