छाती पर है…
कुंडलिया छंद…
छाती पर है लोटता, जिसके कोई साँप।
देख उन्नति और का, वह जाता है काँप।।
वह जाता है काँप, यही है कारण पीड़ा।
अन्तर्मन दुर्भाव, बना लेता घर कीड़ा।।
देता सुख संतोष, जले दीपक जो बाती।
‘राही’ तय फिर साँप, नहीं लोटेगा छाती।। 601
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’