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30 Oct 2021 · 2 min read

छह वर्ष के लिए स्वर्ग (लघुकथा)

छह वर्ष के लिए स्वर्ग (लघुकथा)
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पार्टी के प्रांतीय अध्यक्ष जी के सामने फरियादियों की भीड़ लगी हुई थी। लेकिन यह फरियादी कोई मामूली आदमी नहीं थे। यह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की कठिनाइयों का रोना रोने भी नहीं आए थे। यह सभी अपने अपने जनपदों के जाने-माने नेतागण थे । सभी का आग्रह यही था कि उन्हें विधान परिषद की सदस्यता मिल जाए। तर्क यह था कि उन्होंने पार्टी की लंबे समय तक सेवा की है और अब मेवा खाने का अवसर मिलना ही चाहिए । उनकी बात को संगठन के प्रदेश अध्यक्ष नजरअंदाज भी नहीं कर पा रहे थे । आखिर पार्टी के पास जो शक्ति होती है और जिसके आधार पर विधान परिषद में सदस्य चुने जाते हैं , उसी की माँग तो यह लोग कर रहे थे । सभी को पद चाहिए और सुविधाएँ भी।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा “विधान परिषद की सीटें बहुत कम है । सबको तो नहीं मिल पाएँगी । आप लोग पार्टी को ज्यादा से ज्यादा मजबूत बनाएँ ताकि हम अधिक से अधिक विधान परिषद सदस्य अपनी पार्टी के बना सकें।”
इसके पश्चात प्रदेश अध्यक्ष महोदय तो अन्य कार्यक्रमों के लिए कार में बैठ कर चले गए किंतु वातावरण में फुसफुसाहट काफी देर तक तैरती रही ।
………सबसे ज्यादा मजा तो विधान परिषद की सदस्यता में है । छह साल के लिए समझ लो ,स्वर्ग का टिकट कट गया ।
……….हां भैया ! विधान परिषद की सदस्यता स्वर्ग से कम नहीं है ।
………सुनो भाई ! यह तो बताओ कि विधान परिषद का सदस्य बनने के बाद करना क्या पड़ता है ?
……कुछ हँसी – खिलखिलाहट की आवाज आई और किसी ने कहा “कुछ करना पड़ता तो विधान परिषद का सदस्य ही क्यों बनते ? विधान परिषद में केवल भाषण देना होता है।”
………. अच्छा यह समझ में नहीं आ रहा कि सरकार विधान परिषद का अस्तित्व किस लिए बनाए रखती है ?
……….इस बार का ठहाका बहुत जोरदार था।….
…….. हमारे जैसे लोगों को सेवा के बदले मेवा प्रदान करने के लिए ही तो विधान परिषद बनी है।
इसके बाद भीड़ धीरे-धीरे छँटने लगी और सब अपने – अपने घरों को चले गए।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451

Language: Hindi
199 Views
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