छलिया जैसा मेघों का व्यवहार
न जाने क्यों छलिया जैसा
हो गया मेघों का व्यवहार
बार बार गहराते मगर कुछ
पल में हो जाते तार तार
हवा भी उनके रुख को कर
देती है बार बार कमजोर
बस कुुछ फुहार करके ही बढ़
जाते मेघ सब और किसी ओर
अच्छी बारिश की राह देख रहे
विविध फसलों को सहेजे खेत
आर्थिक भार बढ़ने की चिंता से
सहमे हैं कृषक भाई बंधु समेत
आसमान को छू रहे वर्तमान
में चहुंओर डीजल के भाव
अधिकांश किसान झेल रहे हैं
खेतीबाड़ी में अर्थ का अभाव
जो समय पर बारिश नहीं हुई
तो आगे कम उपजेगा अन्न
इसी चिंता से घुले जा रहे हैं
धरतीपुत्रों के परिजनों के मन