छलावा
मेरे जज्बातों के सागर में क्या, डुबकी लगाओगे।
की अंदर गहरे तक जा पैठ, मोती ढूंढ लाओगे।।
बुरा हूँ मैं कहा तूने, तो होगा ये भी सही लेकिन।
बिना ढूढे बुरा हूँ कितना, यह कैसे जान पाओगे।।
तलाशता हर कोई चाहत अपनी, टूटकर लेकिन।
मिलेगा किसको कितना, किस कदर ये बताओगे।।
न हाँ में ही है रजा तेरी, न ये ना ही मुझे लगता।
बताओ कब तलक यूँ ही, मुझे तुम आजमाओगे।।
इतराओ न अब ऐसे, तुम्हे मैं जो चाँद कह बैठा।
अमावस आ गयी तो सारा, इतराना भूल जाओगे।।
चलो अब जो हुआ सो, देखना पर दुनियाँ छलावा है।
हकीकत जानते ही एकदिन, तुम्ही वापस बुलाओगे।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २२/०३/२०२० )