छलक कर अश्क नज़रों से।
क्या गरीब क्या अमीर जीवन हर किसी का ना होता।
होता है यह उसीका बस जो इसे मस्त मौला सा जीया ।।1।।
भूख की तड़प क्या होती है यह उसको नही पता।
जा कर पूँछों उस गरीब से जिसे यह दो दिन से ना मिला ।।2।।
यूँ मरने से पहले तुमको सोचना था इक बार उनका।
औलाद का गम माँ-बाप से ज्यादा किसी को ना पता ।।3।।
कोई जाकर जरा समझे दे उनको रिश्तों को निभाना।
यूँ लड़ना बेवजह हर वक्त मसले का हल होता ना सदा ।।4।।
यह तड़प है रूहे इश्क की तुमको इसका कुछ ना पता।
दर्द इसका वही जाने जिसने इसको सह कर हो जिया ।।5।।
छलक कर अश्क नज़रों से खुद ब खुद ही गिर जाते है।
जब कोई अपना रूह को देता है बस घाव पर घाव बड़ा ।।6।।
कभी ना कभी हर इंसान ही दो राहे पर होता है खड़ा।
जाये तो जाये किस सम्त वह यह उसको होता ना पता ।।7।।
आ गया उनका इश्क़ देखो अब अलग होने के मोड़ पर।
कोई क्या जानें इस रिश्तें में किसकी कितनी सी है ख़ता ।।8।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ