छलकते आँसू छलकते जाम!
आँसू और जाम बड़े बे-मुरव्वत हैं जब देखो दोनों छलक ही जाते हैं!
दिल के ग़म हों या हो कोई ख़ुशी दोनों कोई भी मौक़ा नहीं गँवाते हैं!
बस छलक गये जो कुछ आँसू कुछ छलकते जाम के साथ
महफ़िल में लोग देखकर भी गुमराह हो गये धोखा खा गये!
ना कोई समझा ना ही लगा कोई जानना चाहता था हक़ीक़त
उनके छलकने की वजह क्या होगी आख़िर कोई किससे कहे
कोई हँसा कोई मुसकुराया किसी ने मुझे ज़ोर से गले लगाया
महफ़िल में जश्न के माहौल को ही वजह मान बस हँसते गये!
किसको बताता मेरे दर्द-ओ-ग़म की वजह मेरा तड़पना
छुपा ली उसकी हक़ीक़त जो बिखर गया ख़्वाब अपना!
इतनी भी मतलबपरसती नहीं खुद के लिए मैं कंधा ढूँढूँ
अपने ग़म की मैं कदर करता हूँ फिर क्यों उम्मीद करना!
लोग समझ बैठे आँसू और जाम बस ख़ुशी में ही छलके होंगे
हक़ीक़त से बेख़बर थे वो मेरे जाम से अपना जाम टकरा गये!
जिन्हें मैं अज़ीज़ था उन्हें एहसास था आँसुओं में छुपे मेरे दर्द का
वो बिना खबर दिये गले लगा आँसू पोंछते मुझे ढाँढस बँधा गये!