छब्बीस जनवरी।
छब्बीस जनवरी सन् उन्नीस सौ सैंतालीस।भारत खुशी मनाता है! जैसे बंध खुलें चौबीस।——–परम्परा का निर्वहन करता है, जैसे आ गये जगदीश।——————बहुत खुशी हुई थी, जैसे कोई खुशी में दे गया बख्शीश।आज भी आनन्द हम मनायेंगे। कोई आनंदित रहें न रहें हम खुशियों के गीत गायेंगे।जय हो भारत तेरी शान निराली है————+—————-इस अर्थ व्यवस्था में सबकी जेब खाली है। कैसे बयां करु मैं हाल, उल्टी गंगा बहती है।अब! सीधी कैसे करोगे जो शंकर के मस्तक पर रहती है।