छप्पय छन्द
छप्पय छन्द
होती दिल में पीर, याद जब उसकी आती।
नही बँधे फिर धीर, अश्रु आँखे बरसातीं।।
यह कैसी है रीति, जाति का भेद बनाया।
रही अधूरी प्रीति, नही उससे मिल पाया।।
उसको पाने के लिए, करते बहुत प्रयास थे।
मन्नत भी माँगी बहुत, रखे बहुत उपवास थे।।
अदम्य