छप्पय छंद
छप्पय छंद
गंगा निर्मल धार, देश खुशहाली लायी। धरती करे किलोल, क्षेत्र हरियाली छायी।।
फैल रहा मकरंद,भोर की शोभा न्यारी।
अंग लपेटे रंग, खिली मदमाती क्यारी।।
वर्ण भेद सब भूल कर, लगे सुखद संसार है।
मंत्रों का तप भूमि पर, गूँज रहा उच्चार है।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)