छद्म शत्रु
बढ़ते जाते खौफ के साए से
कहर अंधेरों केबढ़ने लगे।
घर-घर में पसरे सन्नाटों से,
मर्म मौन का समझने लगे।
अपनों को खोने के डर से,
पराए भी अपने लगने लगे।
एकाकी होते मन को फिर से,
सांत्वना कण बहलाने लगे।
हर पल का जीवन जीने से,
अनगिन अनुभव पलने लगे।
जीवन की वेदी पर कसने से,
संघर्ष भी तुच्छ दिखने लगे।
जीवन नहीं शैली बदलने से,
हम छद्म शत्रु को हराने लगे।
असफल हुए जब रोकने से,
दृढ़ इच्छाशक्ति से भगाने लगे।
हम है तो जहान होगा हमसे,
अस्तित्व प्रश्न के उठने लगे।
दुख के ये बादल घनेरे थे,
संकल्प दे ख अब छंटनेलगे।