छत पर चाँद
आज मेरी छत पर वो चाँद आया
उसको देख आँखों को सुकून आया
जब लबो पर तबस्सुम का मंजर छाया
पतझड़ के आलम में बसंत घिर आया
उसकी रानाइयाँ का तो क्या कहना
पेड़ पर बसंत औऱ दिल मे सर्द आया
मेरा दिल बिना उमंग तरंग के उदास था
देख दिल की बंजर जमी पर सावन छाया
मुसलसल अंधेरो ने मुझे घेरे रखा था
उस चाँद से जीवन में आफ़ताब छाया
ये तो सिर्फ चंद ही उदाहरण है ‘ऋषभ’
बैसे चाँद सूने से जीवन में हर महक लाया
रचनाकर ऋषभ तोमर