छत्रपति शिवाजी महाराज
भारत मां के दिव्य भाल पर जब दाग दिखाई देता था
राजमहल के फरमानों में जजिया का राग सुनाई देता था
सिंहासन मदमस्त हुआ था सब मौसम बेनूर हुए
आजादी पर पहरा था सपने चकनाचूर हुए
सब राजे महाराजे चुप बैठे थे वो लोभ लोलुपता वाले थे
भीष्म प्रतिज्ञा लेकर बैठे थे अर्जुन के मुंह पर ताले थे
इस घोर कुहासे में भी जिसने रश्मिरथी के घोड़े साजे थे
वे कोई और नहीं थे छत्रपति शिव जी राजे थे
जिसने जीजा मां के आदर्शो को मान दिया था
गुरु कोणदेव की शिक्षा को सम्मान दिया था
दाग गुलामी वाले हर फरमान को जिसने फाड़ दिया
आदिल शाह की छाती पर स्वराज का झंडा गाड़ दिया
जीता जब दुर्ग पन्हाला, रायगढ़ पर भगवा लहराया था
तख्त हिले थे दक्कन के दिल्ली तक थर्राया था
अपने भुज बल से जिसने नित नए आयाम गढ़े
राजे की रक्षा में जब वीर मावले खड़े रहे
निकली मावलो की सेना जब निज इतिहास बनाने को
रण चंडी भी निकल पड़ी थी खप्पर भर लाने को
एक मराठा तब सौ सौ अरियो पर भारी पड़ता था
लेकर नाम शिवा जी का जब रण भूमि में वो लड़ता था
देख कला कौशल रण वीरो का अरि दल में विस्मय छाया
राजे मिलने आए अफजल खान ने संदेशा भिजवाया
मिलने पहुंचे जब राजे उस दुष्ट ने उनको पकड़ लिया
मानो सिंह को जैसे उसने अपनी बाहों में जकड़ लिया
राजे ने फिर बाघ नख से उस पर वार किया
मानो नरसिंह ने जैसे हिरणाकश्यप फार दिया
बजा शंख हुआ जय घोष नगाड़ों से
रण भूमि भर गई हर हर महादेव के नारों से
देख नजारा दक्कन का औरंगजेब भी घबराया
डेढ़ लाख की सेना को दुर्ग पुणे फिर भिजवाया
यहां मराठे मचल उठे थे हर प्रतिशोध मिटाने को
रक्त तप्त तलवारों से मुगलों का लहू बहाने को
तब चार सौ मराठे राजे संग बिजली बन कर टूटे थे
मानो महादेव महाकाल बन रण भूमि में कूदे थे
राजे ने फिर रणभूमि को मुगलों की लाशों से पाट दिया
शाइस्ता खान के बेटो को गाजर मूली संग काट दिया
धन्य धन्य ये भारत भूमि इसका राजे ने मान बढ़ाया था
धन्य हुई वो मां जिसने निज सूत सिंह बनाया था
ऐसे राजे की स्तुति में मैं गीत सुनाता हूं
कर जोड़ी नमन उनको मैं श्रद्धा सुमन चढ़ता हूं