छत्रपति शाहूजी महाराज
.========गीत
0307/2021
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दौड़ रही थी वर्ण भेद की, जब-जब तेज हवाएं
सुन रही थी कोई शक्ति, बहुजनों की सदाएं
पढ़ने का अधिकार नहीं था, ना मंदिर कोई जाई
पानी जो पोखर में पीते, पीटे खूब कसाई
मानव को मानव ने बांटा, बनकर के हरजाई।
जानवरों से ज्यादा नीच, बताते शर्म ना आई
सदियों तक बस ये ही पूछा, क्या है मेरी खताएं
सुन रही थी कोई शक्ति ………
नानक, कबीर,रैदास ना जाने, कितनों ने समझाया
मनुवाद को मानवता का ,पाठ समझ नहीं आया
बाबा अंबेडकर ने किया ,जिसका विरोध था भारी
छत्रपति शिवाजी राजा के, वो थे बने आभारी
पीड़ित बहुतजनों की जैसे, मिली थी खूब दुआएं
सुन रही थी कोई शक्ति …………
दासी प्रथा का अंत कराया, नारी देख मुस्कराई
ऊंच-नीच के भेद की तुमने ,खूब लड़ी लड़ाई
तुम थे मानवता के रक्षक, जो नई जोत जलाई
मनुवाद के अरमानों को, जी भर आग लगाई
तुमने तो बस समतावादी, वाले ही फल खाए
सुन रही थी कोई शक्ति ……….
आरक्षण के जनक तुम्ही हो, तुम ही बने करतारी
आज तुम्हारे ही कारण, करते खुशियों की सवारी
नमन तुम्हे कोटि-कोटि है, ए-मानवता के रक्षक
छीन रहे हैं धीरे-धीरे, आरक्षण मानव भक्षक
“सागर” कैसे ये बहुजन, तुमको दे भुलाए
सुन रही थी कोई शक्ति ………..।।
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……….मूल रचनाकार
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
……..दैनिक प्रभारी
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
9149087291