छत्रपति महाराज शिवाजी
छत्रपति महाराज शिवाजी
गीत:- वीर शिवा कहलाया था
तर्ज:- गोरखपुर की जेल में बैठा
औरंगजेब क्रूर जिसके बस, नाम से ही थर्राया था,
वीर शिवा कहलाया था, माँ जीजा ने जाया था,
चढ़ मुग़लों को छाती पर, जिसने भगवा लहराया था,
वीर शिवा कहलाया था, माँ जीजा ने जाया था।।0।।
मिली वीरता की हर शिक्षा, माता जीजाबाई से,
धूल चटा दी सब मुग़लों को, उनकी दी चतुराई से।
साम, दाम और दण्ड, भेद का, ज्ञान उन्हीं से पाया था।।1।।
वीर शिवा कहलाया था…..
एक मुग़ल को गाय काटते, देखा था जब बचपन में,
लेकर के तलवार घुसा दी, उस पापी की गरदन में।
गाय काटने वाले का, इक पल में शीश उड़ाया था।।2।।
वीर शिवा कहलाया था…..
माता जीजाबाई ने इक रोज़, शिवा फटकारा था,
कोख लजायेगा क्या मेरी, यह कहकर दुत्कारा था।
सिंहगढ़ वाला दुर्ग जीत तब, एक दिवस में लाया था।।3।।
वीर शिवा कहलाया था…..
मुग़ल पुकारा करते उसको, मूसक सुनो पहाड़ी थे,
युद्धनीति और कूटनीति के, अद्भुत एक खिलाड़ी थे।
शेर बब्बर ने मुगलों के, दिल में आतंक मचाया था।।4।।
वीर शिवा कहलाया था…..
झूठ, फ़रेब और मक्कारी, सब मुग़लों पर छाई थी,
लेकिन वीर शिवा के आगे, एक नहीं चल पाई थी।
अफ़ज़ल ख़ाँ को कूटनीति से, यम द्वारे पहुँचाया था।।5।।
वीर शिवा कहलाया था…..
ऐसा ऊँचा था चरित्र, अपने महाराज शिवाजी का,
कभी नहीं मिल सकता ऐसा, मुल्ले का या काज़ी का।
गौहर बानो को उसने, माता के सम बतलाया था।।5।।
वीर शिवा कहलाया था…..
औरंगजेब सरीखा शासक, जो घमण्ड में चूर रहा,
वीर शिवा से नहीं जीत पाया, हरदम मज़बूर रहा।
उस पामर को शिवराजे ने, सुन लो ख़ूब छकाया था।।6।।
वीर शिवा कहलाया था…..
कैद किया मक्कारों ने, इक बार शिवा को धोखे से,
लेकिन वह आज़ाद सिंह था, रुका न उनके रोके से।
कैद तोड़कर निकल गया, मुग़लों को नाच नचाया था।।7।।
वीर शिवा कहलाया था…..
जब-जब रहे शिवाजी बाहर, वह अन्दर छिप जाता था,
अपनी ही छत के ऊपर, वह आने से घबराता था,
इतना डर औरंगजेब पर, शिवराजे का छाया था।।8।।
वीर शिवा कहलाया था…..
गौरिल्ला सी युद्ध पद्धति, से मुल्ले घबराते थे,
मूत्र विसर्जन वीर शिवा के, नाम से ही कर जाते थे।
रहे काँपते थर-थर-थर-थर, इतना उन्हें डराया था।।9।।
वीर शिवा कहलाया था…..
वीर शिवा मुग़लों को हरदम, नाच नचाने वाला था,
देश, धर्म के हर दुश्मन की, लाश बिछाने वाला था।
एक अकेले शेर बब्बर ने, दिल्ली को दहलाया था।।10।।
वीर शिवा कहलाया था…..
मुग़लों की छाती को फाड़ा, घाव बड़ा गहरा कर के,
चला गया वह सिंह हमारा, भगवा ध्वज लहराकर के।
माँ जीजा और देश, धर्म का “रोहित” मान बढ़ाया था।।11।।
वीर शिवा कहलाया था…..
✍️रोहित आर्य