छठ महापर्व
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष में,
उपरान्त दिवाली तिथि चतुर्थी,
होती शुरुआत छठ व्रत की,
लोक-आस्था के महापर्व की।
प्रथम दिवस को नहाय-खाय,
बनती लौकी औ चने की दाल,
अरवा चावल का पकता भात,
खातीं व्रती परिवार के साथ।
द्वितीय दिवस, दिन भर व्रत,
रहकर निर्जल करतीं तप,
रात पकती खीर और रोटी,
व्रत का क्षरण (खरना) करतीं व्रती।
तृतीय दिवस को संध्या-अर्घ्य,
दिन भर पकते मीठे पक्वान्न,
तरह-तरह के कंद-मूल-फल,
इनसे सजते सूप औ थाल।
संध्या जाते छठ के घाट,
जल में व्रती गातीं गीत-नाद,
करतीं विनती सूप लिए हाथ,
देते अर्घ्य पूरा परिवार।
घाट पर ही रात्रि-जागरण,
पौ-फटते सूर्यदेव का ध्यान,
उगते ही उन्हें अर्घ्य-दान,
हुआ पूर्ण यह व्रत महान्।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण ‘श्रीपद्’
बेगूसराय (बिहार)