छटाक भर “रौशनी” सब को मुबारक…
कोई जिद नही,
बस दीपों का कनार्क नही बनती थी
परोश के अंधेरे घर को देख
खुद पे ही लाज आती थी
किसी ने आज हंस के पूछा,
अच्छा, दिवाली क्यूं नही मनाती तुम
रौशनी से दुश्मनी है, या
दीपों से जमती नही
छटाक भर रौशनी क्या अंधेरे को दूर करती नही
हमने भी कहा, “मां” घर आई तो हैं तो इसी खुशी में
चलो कुछ दीप जलाया जाय
रौशनी को भी अंधेरे से लडने को उकसाया जाय
छटाक भर “रौशनी” सब को मुबारक…
… सिद्धार्थ