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7 Nov 2021 · 1 min read

छंद कुण्डली

मनोरथ नहीं है मनोबल, चाहत सकल जहान्
आत्मविश्वास जगाय के,आत्मबल ले पहचान.
आत्मबल ले पहचान, होय सकल सब जगत.
देखता रह जाये जगत, रहे न कोई अंधभगत,
कहे महेन्द्र कविराय ,निकट न भवबाधा आये,
मिटे हर क्लेश, करतब ऐसे कर सबको भाये.

डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस

1 Like · 1 Comment · 430 Views
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