छंद: हरिगीतिका : इस आवरण को फोड़कर।
साथी पुराने मीत सब, सम्पर्क उनसे तोड़कर।
जिनके लिए तुम खट रहे,सब स्वप्न अपने छोड़कर।
जिसदिन लगाओगे गणित,तुमको समझ ये आएगा,
पाया नहीं कुछ अंततः, रिश्ते नये ये जोड़कर।
देते रहे छाया जिन्हें, तुम धूप में बरसात में,
तेरी ज़रूरत पर मिलेंगे, वो खड़े मुख मोड़कर।
महँगा पड़ेगा प्यार में, लुटना-लुटाना एक दिन,
संसार का व्यवहार रख देगा तुझे झिंझोड़कर।
सुन्दर महल-सी ज़िंदगी में, द्वार कोई है नहीं,
बाहर निकल ले अश्वनी,इस आवरण को फोड़कर।
_______________________________✍️अश्वनी कुमार