छंद मुक्त कविता : अनंत का आचमन
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अनन्त का आचमन
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आज के परिवेश में
अजनवी के देश में,
कोलाहल पूर्ण असमंजस
बेचैन जीवन की दृष्टि।
राग-प्रेम
काम-भोग
ध्यान-योग
आदर्श-यथार्थ
सार्थक दृष्टि ।
जीवन के तमाम विरोधाभासों,
उतार-चढ़ाव और
तनावों के रहस्यों को
परत दर परत उकेर
उतरी आनन्द की वृष्टि
सपाट भाषा की
विशिष्ट शैली में
बहुआयामी,
अतुलनीय।
निर्वाण के आंगन में
बसन्त का आगमन ।
जर्जर होते जीवन के
विदा के क्षणों में
मन की अथाह अजस्रता में
अनन्त का आगमन ।
सुशीला जोशी, विद्यो त्तमा
9719260777