छंद कुण्डलिया छंद
“”धरती अंबर सज रहे,
आया मास वसंत ।
योगी टेरे योग को,
नील गगन में हंस ।
नील गगन में हंस ।
स्वर्ग सा लगता ये थल..
भ्रमर हुए मदमस्त..
सरित भी करती कल कल
पुलकित सब संसार
चहुं दिशि खुशियां झरती
सुरभित है हर दिशा
सज रही सुंदर धरती।।।””
अंकिता