छंदमुक्त कविता
सूरज की तरह दहकना ठीक है,
फूलों की तरह महकना ठीक है!
जिन्दगी में हमेंशा आगे बढते रहें,
दौड़ ना सको तो सरकना ठीक है!
मौसम ,हालात चाहें जैसा भी हो,
सुबह कलियों सा चटकना ठीक है!
जब सुन- सुनकर कान पकने लगे,
तो सुनाने वाले पर भड़कना ठीक है!
जब घुटन महसूस होने लगे भीड़ में,
अकेले बगियों में चहकना ठीक है!
जब दुःख से मन थक जाये “नूरी”,
दुःख की गठरी को पटकना ठीक है!!
नूरफातिमा खातून नूरी
कुशीनगर