चढ़ा हूँ मैं गुमनाम उन सीढ़ियों तक
चढ़ा हूँ मैं गुमनाम, उन सीढ़ियों तक
मिरा ज़िक्र होगा, कई पीढ़ियों तक
ये दिलफेंक क़िस्से, मिरी दास्ताँ को
नया रंग देंगे, कई पीढ़ियों तक
कई बार लौटे, उन्हें छू के हम तो
न पहुँचे कई पाँव, जिन सीढ़ियों तक
जमा शा’इरी, उम्रभर की है पूँजी
ये दौलत ही रह जाएगी, पीढ़ियों तक
महावीर क्यों मौत का, है तुम्हें ग़म
ग़ज़ल बनके जीना है अब, पीढ़ियों तक