चौवन
तंगहाली में है जीवन कट रहा
जिम्मेदारी हजार और जाता यौवन
कोई ख़ास हसरतें हुईं न पूरी
बीत जाएगा आज मेरा चौवन
हालत आज भी खराब है मेरी
मन नहीं करता पचपन में जाऊँ
बचपन और भी भयावह रहा है मेरा
मन नहीं करता बचपन में जाऊँ
खुद को देख के दुःख था होता
फिर तोड़ दिए है सारे दर्पन
कोई ख़ास हसरतें हुईं न पूरी
बीत जाएगा आज मेरा चौवन
ऊपर जाने की सोचूँ भी तो कैसे
अनगिनत जो जिम्मेदारी है
अपने खातिर तो चैन सुकून
बस केवल अय्यारी है
रूँधे गले और मौन अधर से
करता हूँ खुद का मौन समर्थन
कोई ख़ास हसरतें हुईं न पूरी
बीत जाएगा आज मेरा चौवन
ख्वाब भी बड़े बन जाने वाले
कभी न रात में आतें हैं
इसके पास नहीं है चलना
वे आपस में बतियाते है
ख्वाबों से अपनी बनेगी कभी?
क्या होगा कोई परिवर्तन
कोई ख़ास हसरतें हुईं न पूरी
बीत जाएगा आज मेरा चौवन
-सिद्धार्थ गोरखपुरी