चौबीस घन्टे साथ में
सारी करतूत को देख रहा,
वह चौबीस घन्टे साथ में है।
मानव में केवल मैं मैं है,
बाकी सब उसके हाथ में है।
अति काम क्रोध अति लोभ मोह,
रचना से अतिसय रहे छोह।
दूषित मदिरा आमिष भोजन,
भला सोच क्या इनका प्रयोजन।
चोरी डाका छल झूठ कपट,
घटतौली घूस व छीन झपट।
करके आखिर पछतायेगा,
और कालगती को पायेगा।
नित कृपा करे दयाल अनेक,
दूजा हाकिम है काल एक।
संसार को दो ही चलाते हैं,
जिसे भजें उसी को पाते हैं।
हरि ध्याया कर हरि समायेगा,
वरना फिर वापस आएगा।
चलती रहती अनहोनि होनि,
आगे मिले जाने कौन योनि।
मानव जीवन का समझ मोल,
हर कदम बढ़ा भई खूब तोल।
सार्थकता दीनानाथ में है,
वह चौबीस घन्टे साथ में है।