चौपाई
हे गिरधारी कृष्ण मुरारी।
नाग नथैया वंशीधारी।।
यमुना तट तुम गाय चराये।
चोरी कर ब्रज माखन खाये।।
राधा के तुम नटवर नागर।
दुखहर्ता प्रभु सुख के सागर।।
नन्दलाल प्रभु हे बनवारी।
गोवर्धनधारी गिरधारी।।
शीतलता जलधार तुम्ही हो।
अनल रूप अंगार तुम्ही हो।।
गीता का प्रभु ज्ञान तुम्ही हो।
भक्तन के भगवान तुम्ही हो।।
हान धर्म की जब भी होती।
पाप भार से वसुधा रोती।।
ले अवतार धरा पर आते।
आकर तुम ही पाप मिटाते।।
पंचभूत के तुम हो स्वामी।
जगपालक हे अन्तर्यामी।।
इस जग के प्रभु तुम प्रतिपालक।
जड़ चेतन सबके संचालक।।
जन जन का दुख तुम हरते हो।
याचक की झोली भरते हो।।
नाथ ध्यान कुछ मेरो कीजै।
विपदा मम सर से हर लीजै।।
तुम बिन को मम नाथ सहारा।
शरणागत ने तुम्हे पुकारा।।
नाथ न मांगू हाथी घोड़ा।
भक्ति भाव दीजै मम थोड़ा।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’