“चौपाई, अद्भुत रस”
“चौपाई, अद्भुत रस”
बाल्मीकि के आश्रम आई, अनुज लखन सिय साथ निभाई
माँ सीता पर आँख उठाई, कोशल की चरचा प्रभुताई ।।-1
ऋषी महामुनि अचरज पाए, लखन लला को पास बुलाए
कहो भरत हिय रामहि भाए, कौशल्या के नैन थिराए।।-2
कहो तात कोशल पुर कैसा, राज पाट सरयू पय जैसा
कैसी प्रजा मनहुँ सुख वैसा, कैकेयी वर माँगति तैसा।।-3
गति पति सीता निरख दुलारी, रनिवाशा की रहति सुखारी
को अपराध प्रजा भय भारी, कहु कारन वन ताहि निकारी।।-4
कहु सुमंत की नीति बखानी, कहाँ गए कोशल नृप ज्ञानी
कहाँ मंथरा कहाँ जुबानी, कहाँ गए रघुकुल वरदानी।।-5
जनक सुता अस लक्ष्मी त्यागे, धनि बड़ भाग्य आश्रम जागे
वैदेही अनुजा अनुरागे, जीवन सफल मोर धनिभागे।।-6
अब जनि जिय मानहुँ मन छोहा, सकल कुटी सब खग मृग मोहा
जाहुँ लखन सुत छोड़ बिछोहा, मनहुँ सिया भरि आँचल शोहा।।-7
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी