चोरी तेरी कल पकड़ी गई है…
चोरी तेरी कल पकड़ी गई है…
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खुद को कितना छुपाओगे….
हक़ीक़त हर कोई जानता है !
आईने में कितना निहारोगे….
तू तो खुद को पहचानता है !!
चोरी तेरी कल पकड़ी गई है….
अब भी तो ज़रा तुम शर्म करो !
अनैतिक कार्य तुम इतना किए हो…
एक – आध पुण्य के तो कर्म करो !!
इस नश्वर संसार में रखा ही क्या है….
विदा तो एक दिन सबको ही होना है,
हाॅं, गरीबों की सेवा जो तूने किए हैं !
उसका भी फल पाना तुमको ही है !!
हरेक किए कर्मों का हिसाब यहाॅं होता….
भगवन श्रीचित्रगुप्त रखते इसका लेखा !
क्या तूने कभी अपने अंतर्मन को देखा?
देना नहीं कभी तू इसे भी कोई धोखा !!
अंदर और बाहर दोनों में पारदर्शिता हो !
बाहर से तो सदा दिखते बड़े ही भोले हो !
पर अंदर से तो उगलते बड़े-बड़े शोले हो !
सदा ही करते तुम कुछ-न-कुछ झमेले हो !!
विदा लेते वक्त किए कर्मों का हिसाब देना होगा !
सिवाय अपने कर्मों के सब छोड़ के जाना होगा !
धरती मैया को भी अपना हर क़र्ज़ चुकाना होगा !
जो कुछ हम कर रहे यहाॅं, ज़माना देख रहा होगा!!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 28 अक्टूबर, 2021.
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