“चोट छोटी भी हो”
चोट छोटी भी हो; दिल पे लगती है
पर ये भी सच है; बिन ठोकर बस्तियां कहाँ बचती है ?
सिर्फ रोशनी हो तो रह जाता है सब भीतर ही;
अँधेरा हो तो चाँद तले इकट्ठा तो होते हैं,
मायूसी का दौर भी कर सकता है इतना कुछ
अँधेरे से मिलने से पहले
रोशनी में डुबे हम कहाँ समझते हैं….
©दामिनी ✍
गुरुवार ☀️