*चॉंद की सैर (हास्य व्यंग्य)*
चॉंद की सैर (हास्य व्यंग्य)
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(अगर मान लीजिए कि विज्ञान ने प्रगति नहीं की होती और मनुष्य निर्मित यान चॉंद तक पहुॅंच कर वहां की जमीन और गड्ढों की फोटो खींचकर धरती तक नहीं भेजता, तब ऐसे में ‘चॉंद की सैर’ विषय पर निबंध कुछ इस प्रकार लिखा जाता :-
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सुबह छह बजे हम लोग उड़न-खटोले में बैठकर चॉंद की सैर के लिए निकले। उड़न खटोला हवा से भी तेज चल रहा था। उसमें चारों तरफ सुंदर फूल सजे हुए थे । भीतर सोफे पड़े थे। भोजन की अच्छी व्यवस्था थी। हम लोग खाते-पीते गाते-बजाते चांद की तरफ बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में बादल पड़े। लेकिन हमारे उड़न खटोले पर बादलों की एक बूंद तक नहीं आई। बादलों ने हमें छुआ और हमें रुई की छुअन का एहसास हुआ। फिर हम और ऊंचे चल पड़े ।
चलते-चलते जब शाम हो गई तो हमने उड़न खटोले में लालटेन जलाई। तीन-चार मामबत्तियॉं भी हमारे पास थीं ।उनके जलने से भी उड़न खटोले के भीतर का वातावरण जगमगा उठा। धीरे-धीरे रात घिर आई।
हमारा उड़न खटोला चॉंद की तरफ बढ़ता जा रहा था। अचानक हमें दूर से एक तेज चमकदार रोशनी दिखाई दी। बिल्कुल सफेद दूधिया। चारों तरफ उजाला बिखर रहा था। हल्की-हल्की घंटियों की सी आवाज हो रही थी। उस मधुर संगीत से हम उड़न खटोले में बैठे-बैठे ही मंत्रमुग्ध होते जा रहे थे। हम समझ गए कि हमारा उड़न खटोला चांद के पास आ पहुंचा है।
चॉंद दूर से जितना खूबसूरत दिखता था, पास से उसके हजार गुना ज्यादा सुंदर था। बस यूॅं कहिए कि टकटकी लगाकर देखते रहो और अपनी सुधा-बुध खो जाओ। ऐसा उजला रूप संसार में कभी किसी ने धरती पर नहीं देखा। फिर वह महान क्षण भी आया, जब हमारा उड़ान खटोला चॉंद के ऊपर आ गया। थोड़ी देर तक उड़न खटोले ने चांद के चारों तरफ कुछ चक्कर लगाए और फिर धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा।
नीचे चॉंद की जमीन थी। वास्तव में वह जमीन न कहकर चॉंदी की सतह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। ऐसी सफेद चॉंदी धरती पर भला किसने देखी होगी ! बस यूं समझ लीजिए कि चांदी को पिघलाकर अगर कोई सड़क बनाई जाए, तो बस वही चॉंद की सतह थी। हमने उस चांदी की सड़क पर पांव रखा तो गौरव से भर गए। कितनी सुंदर चांदी की सतह है। ऐसी चमक भला कहां होगी !
उड़न खटोले से हम लोग उतरकर थोड़ी दूर चले तो देखा कि कुछ दूर पर दूध की नदी बह रही है। बिल्कुल सफेद दूध ! दौड़कर पास गए। हाथों में नदी का दूध भरा और मुंह से लगा लिया। गटागट पी गए। ऐसा मीठा दूध संसार में सिवाय चांद के और कहीं नहीं मिलता।
कुछ दूर पर एक बुढ़िया खीर पका रही थी। उसके बाल भी चांदी की तरह सफेद थे। हम समझ गए कि यह वही बढ़िया है, जिसका उल्लेख हजारों साल से कहानी-किस्सों में होता चला आया है। उसने हमें मुफ्त में दूध की खीर खिलाई। उसके पास सैकड़ो कटोरे दूध के खीर से भरे हुए थे। सभी कटोरे चमकदार चांदी के बने हुए थे। वाह ! क्या स्वाद था ! खीर खाकर तो मजा आ गया।
फिर हम चॉंद के बगीचों में घूमने लगे । वहां पर कई झरने बह रहे थे। मजे की बात यह थी कि वह सब झरने भी दूधिया चमक लिए हुए थे। हमने उनका पानी पिया। ऐसा मीठा पानी आज तक हमने नहीं पिया।
चांद पर घूमते-घूमते हमें कुछ महल दिखाई दिए। यह उन लोगों के थे, जिन्होंने धरती पर बहुत अच्छे काम किए थे और जिनको मृत्यु के बाद चंद्रलोक का सुख प्राप्त करना भाग्य में लिखा था । उनसे बातचीत हुई तो उन्होंने हमें अपने निवास स्थान के भीतर आने से रोक दिया। कहा कि आप मृत्यु से पहले इन स्वर्ग के समान सुख वाले महलों में प्रवेश नहीं कर सकते। हॉं, शीशे के दरवाजों से अंदर का दृश्य जरूर निहार सकते हैं। जब हमने दरवाजों पर लगे शीशे से अंदर झांका तो आंखें फटी की फटी रह गईं। सोने के कालीन बिछे हुए थे। हीरे और पन्ने के दरवाजे थे । सोने और चांदी जैसी चमक के झाड़-फानूस लटके हुए थे। अद्भुत संगीत वहां हवा में तैर रहा था। भोजन के लिए किसी बात की कमी नहीं थी । सब लोग मुस्कुराते हुए घूम रहे थे । कहीं कोई चिंता और तनाव का चिन्ह नहीं था । यह सब देखा तो मन में यही आया कि काश हमें भी आगे चलकर इसी चंद्र-महल में कुछ समय बिताने का अवसर मिले तो कितना अच्छा रहेगा !
एक रात हमने चंद्रलोक में बिताई। वहॉं के अनुभव मन में सॅंजोकर अगले दिन सुबह होते ही हम फिर से उड़न खटोले में बैठे और धरती की ओर चल दिए। धीरे-धीरे चंद्रमा पीछे छूट गया और उसकी चॉंदी जैसी चमकती हुई यादें हमारे दिल में बसी रह गईं।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451