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4 Feb 2024 · 1 min read

चैलेंज

कविता

शीर्षक — जब से तुम पाषाण बने

अश्रु प्रवाहित हुए नयनों से,
जब से तुम पाषाण बने।
भाव वेदना मय हो कर क्यों
सपने सब नादान बने।

बीती सदियाँ लेकिन तेरे
अधर कमल तक खुले नहीं।
केश नही बाँधूँगी जब तक,
तृप्ति सजल हो मिले नहीं।
तोड़ दिये अनुबंध हृदय के
जब से तुम पाषाण बने।

करी अर्चना जबसे तुमने
मैं सती जप तप से मिलूँ,
करती नेह प्रलय से ही तो
तुम ही तो प्रिय अतिथि बने।
मेरी मधु भावना के गेह
अश्रु प्रवाहित हुए नयनों से,
जब से तुम पाषाण बने।

स्वरचित ,मौलिक
मनोरमा जैन पाखी

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 100 Views
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