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25 Dec 2021 · 1 min read

चैन की आरज़ू

चैन की आरजू थी, तो दवा का कई खुराक लिया-2
क़म्बख्त जिंदगी की खुराक बनते जा
रहे हैं
शायद हम खाक ही होने को पैदा थे हुए-2
इसलिए खाक पर खाक बनते जा
रहे हैं
अच्छे दिनों की बात नहीं कीजिए सिद्धार्थ-2
हम बुरे दिन को गिनती की तरह
गिनते जा रहे हैं
ऐ जिंदगी तुम्हारा हम भरोसा नहीं करते-2
फिर भी ख्वाब पर ख्वाब बुनते
जा रहे हैं
राह में शोले हैं बुरे वक्त के पड़े-2
एक हम हैं कि उसपर टहलते जा रहे हैं
हिसाब सबका होगा बारी -बारी से-2
हम वक्त के माफिक जो ढलते जा रहे हैं
ये रास्ते मालूम नहीं ले जाएंगे कहाँ-2
हम बस चलते और चलते जा रहे हैं
दुनियाँ की बदल में ज़ब बदल गए
हैं सभी-2
फिर तो हम भी बदलते जा रहे हैं
मुझे बेकार कहने वालों जरा तैयार रहो-2
मेरे भी दिन बदलने जा रहें हैं
जो डगर हौसलों को तोड़ देती है -2
हम उसी डगर पर चलने जा रहे हैं
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

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