चैनो क़रार ख़त्म
होता ही नही दिल से तेरा यह ख़ुमार ख़त्म
बस तेरा ख़्याल आया मेरा चैनो क़रार ख़त्म
पथरा गयी हैं यह आँखें तेरी राह ताकते हुए
न जाने कब होगा यह तेरा इंतिज़ार ख़त्म
शक़ की चिंगारी ख़ाक कर देती है सब रिश्ते
एक उँगली क्या उठी कि सारा ऐतबार ख़त्म
कब सुलह होगी रूठे हुए दिलों के दरमियान
न जाने कब होगी ये आपसी तकरार ख़त्म
क्यूँ नही बनते लोग ‘अर्श’ इत्तिहाद की मिसाल
क्यूँ नही होती यह इख़्तिलाफ की दीवार ख़त्म