चेहरे पे चेहरों को लगाने लगे हैं लोग
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चेहरे पे चेहरों को लगाने लगे हैं लोग
फिर खुद को आईने से बचाने लगे हैं लोग
आदर्श आज सिर्फ़ किताबों में रह गए
माँ -बाप को भी आँख दिखाने लगे हैं लोग
मानिंद-ए- खुदा खुद को समझते थे जो यहां
मोदी के खौफ़ से वो ठिकाने लगे हैं लोग
पिंजरे में कैद करके परिंदों को खुश हुए
क्यों व्यर्थ पाप रोज़ कमाने लगे हैं लोग
लफ़्फ़ाज़-लफंगों से न करती है कँवल बात
बेशक़ मुझे मग़रूर बताने लगे हैं लोग