“चेहरा”
मन के छुपे राज,एक पल में खोलता है।
हम बोले ना बोले, पर ये चेहरा बोलता है।
हो गम का समंदर या खुशियों का काफिला।
भीड़ में भी हो महसूस, खुद का होना अकेला।
कभी आशु या मुस्कुराहट जो आये ।
मन की व्यथा, चहरे पर ले आये ।
जो माथे पे ,आये पसीना।
किसी मुस्किल या फिर डर में जीना।
चहरे पर ले आये, जो मन झेलता है
हम बोले ना बोले, पर ये चेहरा बोलता है।
मन के छुपे राज,एक पल में खोलता है।
हम बोले ना बोले, पर ये चेहरा बोलता है।
आंखे गम को,आशु में बहती है।
खुशी का इजहार चहरे पर, मुस्कान बनके आती है।
मां चहरे से ,मन की दशा जानती है।
इस तर्क को ,सारी दुनिया मानती है।
चुप रहना या गुस्से में आना।
दर्द में चहरे से हसी ,ओझल हो जाना।
यह सच है, मन चहरे से खेलता है।
हम बोले ना बोले, पर ये चेहरा बोलता है।
मन के छुपे राज,एक पल में खोलता है।
हम बोले ना बोले, पर ये चेहरा बोलता है।