चेहरा बेनकाब
***** चेहरा बेनकाब *****
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जब से देखा तुमको बेनकाब
धरती पर उतरा हो माहताब
चेहरा मन को नहीं भाया है
देख लिए यहाँ हुस्न बेहिसाब
आँखे खोलूँ तुम दिखाई पड़ो
नशा छाया है तुम्हारा जनाब
मद्य से ज्यादा तुम नशीली हो
पी ली जैसे पानी बिन शराब
दिलोदिमाग में तुम्ही छाये हो
हरपल आते हैं तुम्हारे ख्वाब
रूप यौवन की पूर्ण चढ़ाई
छेल ना पा र हा हूँ मैं दवाब
सुखविन्द्र रूप तेरे का मुरीद
धुल गया आब में मेरा रुआब
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी रिओ वाली (केथल)