चेतावनी हिमालय की
वर्षों से पुकार लगा रहा हूं
वेदना सबको बता रहा हूं
लेकिन मानव तू वधिर हो गया
अश्रु निरंतर मैं वहा रहा हूं।।
तब जाकर प्रतिकार किया
मैं हिमालय बतला ही दिया
बहुत चेतावनी तुझको दी
पीढ़ा अंतर्मन सहन भी कीं
अब मैं इठला रहा हूं
मैं हिमालय बतला रहा हूं।।
अपने वक्ष को छलनी कर कर
तुझको पाला मैंने अपनाकर
दिए अंसंख्य अमूल्य उपहार
औषधि फल जंगल व्यापार
अस्तित्व ही मगर झुठला रहा हूं
मैं हिमालय बतला रहा हूं।।
तूने होटल बंगला दी कार
किया मेरे अंगों पर प्रहार
विस्मृत किए तूने मेरे उपहार
नोंच लिया मेरा सौष्ठव श्रृंगार
रुक मानव अब मचला रहा हूं
मैं हिमालय बतला रहा हूं।।
ये अध्यात्म तपस्या त्याग भूमि है
इसमें स्नेह सौहाद्र वन पशु भी हैं
तू निरा स्वार्थी भौतिक ही प्राणी
तूने बलात ही की मुझ पर मनमानी
तो सुन मैं विकरालता ला रहा हूं
मैं हिमालय बतला रहा हूं।।
सम्भल सम्भल ऐ मूर्ख प्राणी
तेरा ही हूं मत कर तू नादानी
जल को स्थान दे भूमि के अंदर
रुक जाएंगे भूतल पर ये बवंडर
स्वच्छता महत्व सिखला रहा हूं
मैं हिमालय बतला रहा हूं।।
कहता तू झूठ कि बाढ़ आईं है
मेरी तो ये जल क्रीड़ा अंगड़ाई है
तुमने जो दिया मुझे वापिस लौटाया
देख स्वयं को ही तू क्यों घबराया
झूठी उन्नति बिखरा रहा हूं
मैं हिमालय बतला रहा हूं।
🙏🙏
अति सर्वदा वर्ज्यते🙏