*चेतन ज्वाला*
कब तक देखते रहेंगे सूरत
कब तक गढ़ते रहेंगे मूरत ।
अब उठा लो कलम दवात,
लिख डालो हिरदयकी बात ।
अंशु नहीं सहेगा जुल्मियों का जुल्म,
अपने ही घर में बैठकर।
ना कहलाएंगे कौरव पांडव जैसे वीर,
जो देखते रहे पत्नी का हरण चीर।
तुम्हें शर्म से झुक ना होगा,
अपनी करतूतों पर पछताना होगा,
एकलव्य का अंगूठा वापस करना होगा।