*चेतन जाग्रत सा सोया था*
चेतन जाग्रत सा सोया था ।
कुछ खोया था ,फिर रोया था।।
तन चिन्ह सिहरकर लोचन उतरे।
अमल धवल से निर्मल सुथरे ।।
वही जाने पहचाने चेहरे।
लगा रहे मस्तक पट फेरे।।
स्मृति बीज आ बोया था ।।
चेतन जाग्रत सा सोया था ।।१।।
सजल नेत्र बन बहा नीर।
असहन हुई स्मृति पीर ।
रुकी उसाँसे कंठापथ आकर
रुला रुलाकर फिर वहलाकर।
उन पुनीतों ने नीर पिरोया था ।।
चेतन जाग्रत सा सोया था ।।२।।
मैं बोला तुमने क्यों त्यागा ।
यह जीवन हो गया अफागा।
कहां ढूंडूं अब् चिन्ह तुम्हारे ।
जो अन्तरतम को आन बुहारे।
मैं अनुपम निधि खोया था ।।
चेतन जाग्रत सा सोया था ।।३।।
अब् सम्बल से आदर्श तुम्हारे ।
छान लिए सब घर गलियारे ।
मुझे सदृश वैचारिक अनुभूति।
सिर माथे यह मात्र बिभूति ।।
सुबक सुबक सैय्या तर रोया था।
चेतन जाग्रत सा सोया था ।।४।।
अब् स्मृतियों में आस्था संचित।
जिनका पूजन अर्जन नित नित।
हैं जीवित वे तुम्हारी निधियां ।
अपना कर हूँ जीता विधियां ।
आँचल खूब भिगोया था ।।
चेतन जाग्रत सा सोया था ।। ५।।