चेतना जागृति
प्रभात की नवकिरणों का प्रसार हृदय प्रफुल्लित करता है,
ठंडी बयार का स्पर्श मन मस्तिष्क को आल्हादित करता है ,
प्राकृतिक छटा का विहंगम दृश्य सुखद अनुभूति प्रदान करता है,
पक्षियों की चहचहाहट का सुर प्रकृति के संगीत मे रस भरता है ,
स्वर्ग की परिकल्पना का साकार रूप मुझे इस धरा पर ही प्रतीत
होता है ,
प्रकृति अपने ममत्व स्वरूप निस्वार्थ सेवा भाव से समस्त जीवोंं को पोषित कर रही है ,
परंतु निष्ठुर मानव की स्वार्थपरक भावना प्रकृति माँ के सुंदर स्वरूप को नष्ट कर रही है ,
वह दिन दूर नहीं जब हम प्रकृति के इस अनियंत्रित सतत् दोहन से स्वर्ग तुल्य वसुंधरा को नर्क तुल्य बनाएंगे ,
प्राकृतिक आपदाओं में घिरकर अपरिमित कष्टों को भोगने हेतु बाध्य होंगे फिर ना उबर पाएंगे,