चूड़ियां सिन्दूर पिता हैं
मेरी अम्मा की चूड़ियां सिन्दूर पिता हैं
उनके सोच में रहते हर दस्तूर पिता हैं
अम्मा का रोना-धोना व वजूद पिता हैं
उनकी हर बात में सदा मौजूद पिता हैं
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चले रोजी-रोटी कमाने परदेश पिता हैं
लौटकर जब आ जाएं त्योहार पिता हैं
खुशियां भर कर साथ में लाएं पिता हैं
लिपट गए हृदय से फिर आंसू पिता हैं
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परिवार हर सदस्य का संस्कार पिता हैं
सभी शुभ विचारों का आकार पिता हैं
जब-जब पड़ी जरूरत बाज़ार पिता हैं
समन्वित ज़िन्दगी का व्यवहार पिता हैं
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घर के खर्चों के सामने मजबूर पिता हैं
परवरिश में न चूक हो मजबूत पिता हैं
जब आयी मुसीबतें तब चट्टान पिता हैं
मिल गई सफलता तो मुस्कान पिता हैं
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मेरे जीवन की सर्वोत्तम सौगात पिता हैं
हर अच्छे काम की तो शुरुआत पिता हैं
पल- पल नज़र रखता भगवान पिता हैं
मुझको दिया एक नाम पहचान पिता हैं
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परिवार की धड़कनों का सांस पिता हैं
हर काम में होता रहे अहसास पिता हैं
हरदम रहता गतिमान विश्वास पिता है
अन्दर से सदैव दे रहा प्रकाश पिता हैं
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– रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’