” चुस्की चाय की संग बारिश की फुहार
” चुस्की चाय की संग बारिश की फुहार ”
चाय ढाणी का हवादार बना वो कमरा
रिमझिम रिमझिम बारिश की है झंकार,
माह है सावन का दोपहर का नजारा है
पूनिया के मन को गुदगुदाती है बार बार,
भीगा भीगा सा है तन आज माटी का भी
राज संग महफ़िल मीनू की है सरकार,
भिन्नी भिन्नी सी महक फैली है चारों ओर
एकदम से फिर बढ़ गई बूंदों की रफ्तार,
ऑर्डर किया चाय का साथ मंगवाए पकोड़े
पकवानों से लग रहा जैसे हो कोई दरबार,
शुकून दे रही ये चाय की खूबसूरत चुस्की
होले से स्पर्श करती गालों को बूंद की फुहार,
इन्द्रधनुष दिखाया अम्बर ने मोर बोला पीहू
चारों ओर चाट पकोड़े की अब हुई है भरमार,
खुशनुमा हुआ है वातावरण शीतल हुई हवा
नृत्य लीला कर रहे तरु बहका सा है संसार।