चुलियाला छन्द
13/16 मात्राओं पर यति
या दोहे के अंत मे 122 लघु गुरु गुरु
मैं भी प्यारा सा लिखूँ, चुलियाला का छन्द पटल पर।
पढ़ने में अति गेय हो, भाव भरूँ मैं ढूंढ नवल कर।
वाह वाह गुरुदेव की, मिले मुझे जो आज विकल जी।
तो अदम्य साहस बढ़े, खुद पर कर लूँ नाज अटल जी।
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हर पग पर मुझको यहाँ, अपनो ने ही कष्ट दिया है।
मुझको सच्चे मार्ग से, इस दुनियाँ ने भ्रष्ट किया है।
झूठ दंभ की आग में, जलता है अब अंग हमारा।
सत्य धर्म की कब दिखे, मुझको पावन गंग किनारा।
अदम्य