चुप ही रहेंगे…?
चुप ही रहेंगे…?
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परिवार का मुखिया ,
एक ऐसा था फ़रेबी ।
भोला सा मुखड़ा था उसका,
कहता था, हम है बुद्धिजीवी।
धन दौलत घर भरा पड़ा था ,
पर दिल में ईमान कहाँ था ।
सन्तान अनेकों थे मुखिया के ,
पर छोटे में दिल बसता था ।
विषंग,व्यर्थ व्यवहार दिखलाया ,
छोटे को सब जागीर थमाया ।
छोटा पुत्र करी अनेकों शादी,
भोग-विलास का वो,बन गयाआदि ।
और पुत्र सब, व्यथित जब होता,
कहता तुम ,नफ़रत क्यों करते।
रहना हो तो, रहो मिलजुलकर ,
नहीं तो तुम, बन जाओ साधु ।
सब मानव है एक धरा पर ,
लड़ते क्यों हो, जीवन पथ पर।
बड़ा पुत्र, सुनकर बौखलाया,
जुल्म सितम, वो सह नहीं पाया।
पिता,भाई जब हुआ बेकाबू ,
गृह त्याग वो बन गया साधु।
पर्वत पर फिर डेरा जमाया ,
प्रभु कृपा से वरदान वो पाया।
समय भी देखो करवट बदली ,
साधु ने जागीर हथिया ली।
सोचा उसने करूँ कुछ ऐसा ,
फिर भुगते ना कोई, मेरे जैसा।
जब तक मन में असंतोष रहेगा,
कैसे प्यार दिल में पनपेगा।
नीति धर्म की बात हो जग में ,
शिक्षा, कानून समान हो जग में।
पक्षपात पर अड़े न कोई ,
फिर से गुलामी सहे न कोई ।
सब मानव है एक धरा पर ,
कानून भी हो अब,एक बराबर।
लोग अनेकों ऐसे जग में ,
रहता बस उपदेश ही मुख में।
कहते मानव एक यहाँ पर ,
सब जन यहाँ मिलजुलकर रहेंगे ,
समान अधिकार की बात आये जब ,
इस मुद्दे पर चुप ही रहेंगे ।
इस मुद्दे पर चुप ही रहेंगे…?
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २२ /०२/ २०२२
फाल्गुन ,कृष्णपक्ष ,षष्ठी ,मंगलवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201