*चुप बैठें *
तुम बहरे हो तो क्या ? हम सुनके भी चुप बैठें ।
वेदम समझते हो तो क्या ,हम पिटके झुक बैठें।।
हमारा सलाद बनाने की जोखिम मत लो मिंया
जो उखड़के खेत से हम ,तुम्हारे मुंहूं में घुस बैठें।।
माना कि तुम मलाई चाटकर मांसल हुए फिर
अपना जिश्म है प्यारा हमें,तुम्हे देखके घुट बैठें।।
हमने बनाया है पसीने में नहा के मकान अपना
देकर उसे खैरायत में हम तुम्हें, क्या लुट बैठें।।
तुम्हारा चालो चलन पता नहीं किस मुल्क का है
हम अपनी इंसानियत को छोड़के ,क्या मिट बैठें।।
हमारे बल पे टिकी हैं ग़र खुशियां ‘साहब’ उनकी
तो मिटके देखें जरा वतन पे ,ना उठ के गिर बैठें।।